Sunday, March 4, 2012

कन्फ्यूज्ड पर्सनालिटीज....


सुना है, सैफ़ अली खान ने, बिजनेसमैन, इकबाल शर्मा पर हाथ उठा दिया....यूँ तो, मैं सैफ़ को एक अच्छा, एक्टर मानती हूँ...लेकिन उनकी ऐसी ही बेज़ा हरकतें, उनको क़ानून की नज़र में दोषी क़रार देतीं हैं और गिरा देतीं हैं हम जैसे 'आम' लोगों की नज़रों से......हो सकता है, उनके इस 'सोलो हिट' के पीछे कुछ कारण रहा हो.....लेकिन ये भी सच है कि, बॉलीवुड में जो भी, राजा, रजवाड़े, शहंशाह, पीर, बावर्ची, भिश्ती और खर हैं ...आये दिन कुछ न कुछ, अजब-गजब कर ही जाते हैं...क़ानून को हाथ में लेना तो, बॉलीवुड पूतों के बायें हाथ का खेल है...क्योंकि अपनी गली में ही तो, हर कोई शेर होता है न !!!...ये आन, बान, शान वाले खान, कपूर, दत्त, आहूजा, अब्राहम ऐसी हरकत, अपने कैम्पस में ही कर सकते हैं, काहे कि इनकी जो भी पूछ है,  बस हिन्दुस्तान में ही  है...
सिर्फ हिन्दुस्तान में ही संभव है, कुछ भी करके, साफ़ बच कर निकल जाना, और तो और फिर हीरो भी बन जाना, ....क्योंकि हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है, जहाँ अजमल, क़साब जैसे जलील इंसान, कुछ भी करके बाक़ायदा जिंदा बचे हुए हैं...और उनकी हिमायत करने के लिए, कुछ पाखंडी हिन्दुस्तानी, अपना वड्डा सा दिल लेकर खड़े हो जाते हैं...फिर, जिन बॉलीवुड सम्राटों की बात हम कर रहे हैं, वो तो हमारे परम प्रिय स्टार्स हैं...हमारे सपनों के राजकुमार...'दी परफेक्ट पीपल ऑफ़ द सिल्वर स्क्रीन ', हमारे आदर्श....जिनके मंदिर तक बना कर लोग पूजने को तैयार रहते हैं...इनपर भला कैसी पाबंदी ?

लेकिन यही 'परफेक्ट पीपल' भारत से बाहर आ जाएँ, तो इनकी नानी-परनानी सब याद आ जायेंगी.... यहाँ ये ऐसी कोई हरकत करने की हिमाक़त नहीं कर सकेंगे.....क्योंकि यहाँ,  क़ानून, क़ानून ही होता है...किसी के हाथ का झुनझुना नहीं...और फिर यहाँ इनसे कहीं ज्यादा रूप, गुण और धन वाले लोग भी तो मौजूद हैं...यहाँ इस तरह के अनियंत्रित व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाता, अगर भूले से भी ऐसी हरक़त, किसी राह चलते हुए इंसान के साथ भी कोई कर जाए, तो वही राह चलता इंसान इनकी वो गत बनाएगा, कि ये पनाह माँगते फिरेंगे....क़ानून के लपेटे में ऐसे आयेंगे कि, पानी तक पीना दूभर हो जाएगा....यहाँ तारीख़ पे तारीख़ नहीं पड़ती....मामले मिनटों में निबटाये जाते हैं....अंत में, ये ऐसी जगह खदेड़ दिए जायेंगे, जहाँ से इनकी वापसी मुश्किल ही होगी....हाँ, हिन्दुस्तान की बात अलग है...वहाँ जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला फार्मूला चलता है...फिर इनके हाथ में लाठी की कौन कहे...कभी-कभी ए.के.४७ भी होता है...और इनकी हर बत्तमीजी, आई-गई बात हो जाती है...देख लिया है, बड़े सारे महान खान एंड कपूर को...जिनकी कीमत विदेशों में आकर दो कौड़ी की भी नहीं होती....विदेश ये आते हैं सिर्फ कमर मटका कर पैसे बनाने....जब ये पैसों के लिए विदेशी घरों में जाकर ठुमके लगाते हैं...तब कहाँ जाती है इनकी नवाबी और खानगिरी ..? वो तो भला हो हम विदेशों में रह रहे, हिन्दुस्तानियों का...जिनकी वजह से, इन तथाकथित महान हस्तियों को थोड़ी-बहुत तवज्जो मिल जाती है...

जब भी किसी बॉलीवुड स्टार से मुलाक़ात हुई है...एक बात ज़रूर सुनने को मिली है...यार कुछ डालर-उलर दिलाओ..हा हा हा...ये यहाँ आते हैं, डालर कमाते हैं और चले जाते हैं... और अगर कोई भूले भटके यहाँ बस जाए तो...तो कुछ सालों में ही, या तो गुमनामी में गुम हो जाता है, या फिर गुमनामी से घबरा कर, भाग खड़ा होता है....
 
सिने तारिका माधुरी दीक्षित का विवाह जिन डॉ. नेने से हुआ...पहली मुलाक़ात में डॉ. नेने, जो कि एक हिन्दुस्तानी हैं... उनको भी पता नहीं था कि माधुरी, हिन्दुस्तान की मशहूर ऐक्ट्रेस हैं...तो जनाब इतनी ही खबर रहती है, यहाँ बसे हुए यंग हिन्दुस्तानी पीढ़ी को, वहाँ के सेलेब्रिटीज के बारे में...फिर बाकी जो गोरे हैं, उनको क्या पड़ी है कि, वो जानना चाहें कि ये खान, कितने महान हैं...अमेरिका में जब माधुरी दीक्षित थीं (हालांकि मैं भी उनकी फैन, कूलर, पंखा, एसी  हूँ और अफ़सोस ही होता था सुनकर ) तो उनको अपने बैंक का काम, ग्रोसरी शौपिंग, बच्चों को स्कूल से लाना, ये सारा काम, अपनी सास के साथ यहाँ-वहाँ जाकर, करना पड़ता था...अकसर वो 'आम' लोगों के साथ ग्रोसरी शॉप की लाइन में खड़ी देखी जातीं थीं...जब कि भारत में ऐसा दृश्य शायद असंभव ही होगा...माधुरी जी के हाथ में कुछ था ही नहीं, और न ही वो कुछ कर सकतीं थीं...क्योंकि यहाँ का लाइफ स्टाईल ही ऐसा है...उनपर यहाँ की गुमनामी भरी ज़िन्दगी, कितनी भारी पड़ी होगी, इसका अंदाजा लगाना भी एक पी.एच.डी. का विषय हो सकता है...आखिर अपनी पहचान वापिस पाने के लिए उनको, भारत का रूख़ करना ही पड़ा...

हम अपने आस-पास ऐसे लोगों को भी देखते हैं,  जो इन 'सो काल्ड परफेक्ट पर्सन्स' की बेजा हरकतों, जैसे किसी को पीट देना, गरीबों पर गाडी चढ़ा देना, अपनी मर्ज़ी से कीमती जानवरों का शिकार  करना, इत्यादि, को न सिर्फ सही मानते हैं, इनकी तरफदारी करने में ज़मीन-आसमान एक कर देते हैं...ये लोग मानते हैं कि...जिनके पास पैसा और बल होता है, वो कुछ भी कर सकते हैं, और उनको ऐसा करने का पूरा हक़ है...ये कन्फ्यूज्ड पर्सनालिटीज ऐसी गलतियों को न सिर्फ अल्टीमेट क्वालिफिकेशन मानते हैं, उनको जस्टिफाई करने के लिए उलूल-जुलूल तर्क भी देते हैं...कहते हैं, जिसके पास पैसा और पावर है, उनको कुछ भी करने का स्वयं-घोषित अधिकार है....वाह !! क्या बात हैं....!! जैसे हम सब बेवकूफ, दुनिया में नहीं ...जंगल में रहते हैं...हाँ नहीं तो....!!!

इसका मतलब है कि, जिसके पास जितना ज्यादा पैसा है, उसे  उतना ही ज्यादा अनुशासनहीन होना चाहिए...और जिनके पास पैसा नहीं है, वो पैसे-पावर वालों के शिकार बनते रहे ?  फिर तो, बिल गेट्स और वारेन बफेट उतर आयें घटियापन पर...क्योंकि उनके पास जितना पैसा है, उतना तो ये खान-वान ख्वाब में भी नहीं सोच सकते हैं...वाह रे पैसा और पावर के हिमायती...!!! सच्ची बात तो ये है कि, जो सचमुच बड़े  होते हैं, वो उतने ही नम्र होते हैं...फला हुआ पेड़ ही झुका हुआ रहता है...ये सारे खान, खजूर के पेड़ हैं....और उनके हिमायती झाडू का तिनका...!!

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर,
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर....

वैसे इन पैसे-पावर वालों से ज्यादा, उनकी बेज़ा हरकतों को सही बताने वालों और उनकी तरफदारी करने वालों का ईलाज होना चाहिए...पता नहीं, ये बेवकूफ किस स्कूल से पढ़ कर आये हैं ??....वर्ना शरीफ़ लोग तो शराफ़त को ही अपना आई. डी. मानते हैं...ऐसे दीमाग से पैदल लोगों को, अगर छट्ठी का दूध याद दिलाना हो तो उनको कनाडा, अमेरिका में कुछ दिन के लिए रहना चाहिए...यहाँ उनकी सारी गलतफहमियाँ ऐसे दूर हो जायेंगीं, कि फिर कभी लौट कर नहीं आएँगी...और तब कम से कम, वो एक सामान्य इंसान (जो वो हैं) की सामान्य सी ज़िन्दगी तो जी पायेंगे...किसी भी तरह की घोर ग़लतफ़हमी का शिकार होकर, अपनी बेहद सामान्य सी ज़िन्दगी को बर्बाद नहीं करेंगे...क्योंकि जिनके पास कुछ नहीं होता है, उसके पास गलतफहमियों का, वड्डा सा ज़ज़ीरा होता है...और आत्मुग्धता का तालाब... जिसमें आये दिन वो, डुबकी लगाते रहते हैं, और बनाते रहते हैं, जज़ीरे पर ताश के पत्तों का महल...फिर एक दिन जब सचमुच उन्हें, लूजर होने का भान होता है..तो न वो तालाब होता है, न ही महल.....ज़िन्दगी नहीं रूकती किसी के लिए , परन्तु देर ज़रूर हो जाती है...
जीवन की सबसे बड़ी सच्चईयाँ हैं ये, सभी इस बात को जानते हैं...बस मानना नहीं चाहते हैं.....रूप, चार दिनों की चाँदनी है.... धन, कब साथ छोड़ दे, कहा नहीं जा सकता...बल, तो सबसे पहले भाग लेता है...आज डोले-शोले हैं..५ साल बाद वो नहीं रहेंगे....और ५ कदम चलने में ही सांस फूल जायेगी....आपका अपना शरीर ही, आपका साथ छोड़ देता है...और आप आत्ममुग्धता के तिलस्म से बाहर आकर, औंधे-मुँह गिरते हैं...उस समय बस, एक ही चीज़ आपके साथ रह जाती हैं..मन की  कड़वाहट, जो ता-उम्र साथ रहती है...और उसके साथ रहता है, पछतावे से भरा हुआ, लक्ष्यहीन जीवन....इस हेतु, समय रहते सम्हल जाना बेहतर होता है....बालक/बालिके....!!!

हाँ नहीं तो..!!