Thursday, February 2, 2012

धर्म के नाम पर...?????

मोहमद शाफिया, पत्नी तूबा याह्या और बेटा हमीद
पिछले दिनों कनाडा में शाफिया केस की सरगर्मी बनी रही...
बीते रविवार मोंट्रियल में रहने वाले, अफ़गानी शाफिया दम्पति और उनके बेटे  पर ४ खून करने का, जो ३० जून २००९ को हुआ था, इल्जाम साबित हो चुका और उन्हें फर्स्ट डिग्री मर्डर करने का गुनाहगार पाया गया तथा बिना किसी पैरोल के २५ साल की सज़ा सुना दी गयी...चारों मक्तूलों की लाश रीदो नहर में पारिवारिक कार में डूबी हुई पायी गयी थी...

ये चारों क़त्ल मुजरिमों ने 'ओनर किल्लिंग' के तहत किया...
मोहमद शाफिया, पत्नी तूबा याह्या और बेटे हमीद ने मिलकर, हमीद की ३ बहनें, १९ वर्षीय जैनब, १७ वर्षीय सहर, १३ वर्षीय गीती शाफिया और ५० वर्षीय मोहम्मद शाफिया की पहली पत्नी, जो निसंतान थीं, रोना मोहम्मद अमीर की हत्या कर दी....हत्या का कारण, इन लड़कियों का पाश्चात्य तरीके से रहना साबित हुआ है...दंग हूँ देख कर, पुरुष कहीं भी रहे, नारी को अपनी संपत्ति ही मानता है...इन नारियों ने सर उठाने की कोशिश की तो, अपनी जान से हाथ धो बैठीं...सोचती हूँ नारियों का जीवन अफगानिस्तान में कैसा होगा...जहाँ नेल-पोलिश तक लगाने के लिए पुरुषों की आज्ञा चाहिए...कौन कहता है हमने तरक्की कर ली है...?


कहने को तो हम सभ्य-समाज में रहते हैं...लेकिन आज भी लगता है पुरुष की अपनी कोई इज्ज़त नहीं होती, उसकी इज्ज़त घर की नारी से ही होती है...तभी तो हर वक्त इज्ज़त का ठीकरा नारी के सर पर ही फूटता है...मानो नारी न हुई सम्मान का 'प्रशस्ति पत्र' हुई...पुरुष जो जी में आये करे...लेकिन नारी को इंची-टेप लेकर हर कदम रखना चाहिए...वो क्या पहनेगी, वो कैसे सजेगी, वो क्या खाएगी, वो क्या सोचेगी...हर बात उसे पुरुष से पूछ कर या उसकी अनुमति से करना चाहिए....वाह रे हमारा सभ्य-समाज...!!!

५० वर्षीय रोना मोहम्मद अमीर , १९ वर्षीय जैनब, १७ वर्षीय सहर, १३ वर्षीय गीती शाफिया
मोहम्मद शाफिया ने दावा किया कि उसकी बेटियों ने 'इस्लाम के साथ धोखा किया' और परिवार के सम्मान के साथ खिलवाड़....और उसे इस बात का कोई दुःख नहीं कि उसने यह दुष्कर्म किया..जहाँ तक इस्लामिक संस्थाओं का सवाल है उन्होंने जम कर इस कृत्य की भर्त्सना तो की है..लेकिन क्या सचमुच उनकी सोच बदल गयी है..?

कोई भी सही दिमाग वाला इंसान यही कहेगा कि, जिसे भी अपने धर्म और तथाकथित संस्कृति से प्रेम है, वह अपना देश छोड़ कर किसी और देश को अपना बसेरा ना बनाए...क्योंकि किसी भी देश का कानून, उनके धर्म और संस्कृति से बहुत ऊपर होता है....अगर शाफिया परिवार यहाँ के समाज में नहीं रम नहीं पा रहा था, तो उसे बहुत पहले ही यहाँ से चले जाना चाहिए था....और अफगानिस्तान की तालिबानी संस्कृति को अफगानिस्तान में ही प्रयोग करना चाहिए था...फिर शायद उन्हें वहाँ 'इस्लाम का प्यारा ' माना जाता...परन्तु अब तो बाज़ी उलटी पड़ी है...५८ वर्षीय शाफिया, ४२ वर्षीय उसकी पत्नी और २१ वर्षीय हमीद अपने जीवन का बहुत लम्बा वक्त बिताने वाले हैं,  सलाखों के पीछे...

हैरानी होती है देख कर...अईपैड, मोबाइल, BMW , डोल्लर की ख्वाहिश रखने वाले, ये धर्म के ठेकेदार ,किस तरह दोहरी ज़िन्दगी जी लेते हैं...गौरतलब बात ये भी है कि कनाडा के क़ानून में दो शादी की आज्ञा नहीं है...जबकि शाफिया ने अपनी पहली पत्नी को यहाँ के दस्त्वेजों में अपनी पत्नी नहीं, अपनी कजिन बताया है...वो पहले कजिन रही होगी, बाद में पत्नी तो बन ही गयी थी...क्या इस तरह के झूठ की आज्ञा इस्लाम में है ? अपने स्वार्थ के लिए धर्म को तोडना-मरोड़ना क्या सही माना जाएगा...और ऐसे लोग कैसे सम्मान और संस्कृति की बात करते हैं...??
ये कैसा धर्म है तो लड़कियों के कपड़ों की लम्बाई-चौडाई से दरक जाता है...और उनकी जान लेकर ही सही कहलाता है...

इन चार निर्दोष लोगों की, शर्मनाक हत्याओं के पीछे हाथ है....जाहिल और तुड़ी-मुड़ी तथाकथित 'सम्मान' जैसी अवधारणा....जो आज भी समाज में धूम-धाम से मौजूद है...और उसी थोथे सम्मान को बचाने के लिए तथा अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न और अपना वर्चस्व साबित करने के लिए शाफिया जैसे काहिल, और इंसानियत के नाम पर धब्बे लोग, अपनी ही निरीह बेटियों का शिकार कर, अपने पुरुषत्व का प्रमाण-पत्र देते हैं... क्योंकि नारी पर अपना पुरुषत्व दिखाने से बेहतर विकल्प और क्या हो सकता है भला  !!...लेकिन वो भूलते हैं कि ऐसा करके वो सिर्फ अपनी नपुंसकता ही दिखा जाते हैं...और कुछ नहीं...!!

मैं कनाडियन जस्टिस सिस्टम की आभारी हूँ जिसने ऐसे हैवानों को उनकी सही जगह दिखा दी...मौत की सज़ा तो इनके लिए बहुत आसन सज़ा होती...अब हर दिन का हर पल ये अपने होने पर पछतायेंगे और कोसेंगे कि ये जिंदा क्यूँ हैं....तब उन्हें किसी के जीवन का सही मूल्य पता चलेगा...ईश्वर उन्हें कभी भी शांति ना दे...

हाँ नहीं तो..!!