Monday, November 23, 2009

पुकारता चला हूँ मैं.......भरी दुनिया में आख़िर दिल को ..




चित्रपट : मेरे सनम
संगीतकार : ओ. पी. नय्यर
गीतकार : मजरूह सुलतान पुरी
गायक : रफ़ी

इस ब्लॉग पर आवाज़ ......श्री संतोष शैल की है

पुकारता चला हूँ मैं
गली गली बहार की
बस एक छाँव ज़ुल्फ़ की
बस इक निगाह प्यार की
पुकारता चला हूँ मैं

ये दिल्लगी ये शोखियाँ सलाम की
यहीं तो बात हो रही है काम की
कोई तो मुड़ के देख लेगा इस तरफ़
कोई नज़र तो होगी मेरे नाम की
पुकारता चला हूँ मैं

सुनी मेरी सदा तो किस यक़ीन से
घटा उतर के आ गयी ज़मीन पे
रही यही लगन तो ऐ दिल\-ए\-जवाँ
असर भी हो रहेगा इक हसीन पे
पुकारता चला हूँ मैं

दोनों में से किसी भी एक प्लेयर सुन लें......



फिल्म : दो बदन
गीतकार : शकील बदायूँनी
संगीतकार : रवि
गायक : रफ़ी
यहाँ आवाज़ ..स्वप्न मंजूषा 'अदा' की है ...

यह एक कठिन ग़ज़ल है....सुर के हिसाब से नहीं......scale के हिसाब से....
रफ़ी साहब की pitch पर गाने में पुरुषों को ही मुश्किल होती है....फिर भी मैंने कोशिश की हैं....
है तो आश्चर्य की बात लेकिन संगीत में गायिकाओं का scale पुरुष गायकों से नीचे होता है....
इसी लिए महिलाओं को पुरुषों के गाने गाने में कठिनाई होती है....
मैं सफाई नहीं दे रही हूँ...बस एक जानकारी दे रही हूँ.....
आप सब से अनुरोध है कि आप इस बार सिर्फ सुन कर मत जाइएगा.....बताइयेगा....जो भी कमी है.....उसके बारे में....

भरी दुनिया में आख़िर दिल को समझाने कहाँ जाएं
मुहब्बत हो गई जिनको वो दीवाने कहाँ जाएँ

लगे हैं शम्मा पर पहरे ज़माने की निगाहों के
जिन्हें जलने की हसरत है वो परवाने कहाँ जाएँ

सुनाना भी जिन्हें मुश्किल छुपाना भी जिन्हें मुश्किल
ज़रा तू ही बता ऐ दिल वो अफ़साने कहाँ जाएँ

नज़र में उलझाने दिल में है आलम बेकरारी का
समझ में कुछ नहीं आता वो तूफानें कहाँ जाएँ

दोनों में से किसी भी एक प्लेयर सुन लें......